बुधवार, 7 जून 2023

जीवन - -

जीवन की परिभाषाएं जो तुमने गढ़ी
वास्तविकता से कहीं दूर थीं,
ज़िन्दगी हमने भी जी है
हर पल ख़ुद को छला,
न कोई फूल ही
मुस्कराता
पाया,
न चांदनी को  गुनगुनाते,
घाटियाँ उदास थीं
झरनों में थे
अदृश्य
इन्द्रधनुष, मायावी,  स्वप्नमयी
पृथ्वी तुम्हारी कृति, हम ने
तो हर तरफ नग्न
सत्य देखा ।

-- शांतनु सान्याल

सोमवार, 22 नवंबर 2010

मेरुदंड विहीन - -

मेरुदंड विहीन समाज 
पूर्वाग्रहों से ग्रसित,
एक पथिक व 
असंख्य 
बहुमुखी सर्प, पूजा - -
स्थल के सीढ़ियों 
में दो हाथ जोड़े, 
जीवन की 
भीख 
मांगता रहा पथिक - -
दिग्भ्रमित दर्शन, 
उन्मादित 
अनुयायी
रक्त व 
गरल अविराम प्रवाहित। 
अदृश्य शक्ति के लिए
मानव रक्त बहता 
रहा। क़ाश 
अशरीरी 
शक्ति इन्हें रोक पाती
शुद्ध व पवित्र सही 
अर्थों में बना 
पाती। 

-- शांतनु सान्याल 


शनिवार, 24 जुलाई 2010

अंतराल,

एक दीर्घ अंतराल, शायद 
पलाश खिलें हों, बचपन 
की धुप छाँव, कुछ 
धुंधले कुछ 
उज्जवल  
समय विकराल, शायद 
अनायास मिलें हों,
आम्रकुंजों में प्रवासी कोकिल 
कुहके दिन ढलते, होली के रंगों में वो 
कच्ची प्रणय बेलें, 
जीवन मायाजाल,
शायद कहीं 
अमलतास  हिलें हों, आषाढी 
रिमझिम और भीगते 
अपरिपक्व देह , 
सोंधी माटी 
की महक, 
नव उभरते उमंगों का कम्पन 
कमल शोभित ताल,
शायद प्रणय 
आभास 
गीले हों। 
 --- शांतनु सान्याल

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

-या तुम या हम जाने

गुलमोहरी शाम, किताब 
लौटाने के बहाने,
निगाहों की 
बातें, या 
तुम या हम जाने,
काँपते ओठों 
के राज़,
दिल 
के वो अफ़साने, आग बरसाती 
रातें, या तुम या हम जाने,
बाँहों में सिमटने की 
ख़ुशी, बेक़रारी 
के तराने,
बिन बादल बरसातें, या तुम 
या हम जाने, बेखौफ़ 
लुटने की लज्ज़त,
इश्क़ के ख़ज़ाने,
कभी सहमे 
कभी 
घबराते,या तुम या हम जाने। 
२ - रह रह के दर्द उठता, आह 
गिरती संभलती, तब जा
के मुहोब्बत का 
इज़हार 
किया होता, सोच में गुमसुम 
होते, दीवानगी का नशा 
बढ़ता, जुनूं में बिखर 
कर साहब, प्यार 
किया होता। 

- शांतनु सान्याल 

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

जीवन की परिभाषाएँ

जीवन की परिभाषाएँ तुमने जो गढ़ी
असलियत से दूर पायी, ज़िन्दगी 
तो हमने भी जी है, फूलों को 
दर्द से मुस्कुराते और
चाँदनी को 
खुद-ब-खुद जलते देखा, घाटियों के 
प्रतिध्वनि में चीखती, कराहती 
आवाज़ें सुनी, इन्द्रधनुष के 
रंगों में बिखरती
मासूम की 
हसरतें 
देखीं, 
प्रेम अनुराग के मायाजाल में - -
ग़रीब जज़्बातोँ को घुट 
घुट कर मरते देखा,
सुबह जो मेरे 
सीने से 
लिपट
दोस्ती के नए आयाम रच गया,
साँझ ढलते उसी ने रुख़ 
अपना मोड़ लिया,
किसी झरने 
की तरह,
तुमने शायद ज़िन्दगी दूर से - -
देखी होगी, नीले पर्बतों को 
ख़्वाबों में ढाल दिया,
क़ाश ज़िन्दगी 
तुम्हारे 
ग़ज़ल के मानिंद होती ख़ूबसूरत 
होती। 
---शांतनु सान्याल   

शनिवार, 17 जुलाई 2010

छूटता किनारा

इन्द्रधनुषी रंगों में ढली वो प्रणय-अभिसार की बातें
मौसम की तरह, जाने अस्तित्व खोते चले गए ------
रिश्तों में छुपी इक लकीर विष घोलती रही चुपके चुपके
हमें पता भी न चला, वो यूँ ही दूर होते चले गये -------
खुद को सहेज पाते के बिखराव ने दायरा बढ़ा लिया
हम फूल ही बिनते रहे, वो राह पे   कांटे  बोते चले गए-
उनकी आँखों में, नई तस्वीरें रोज़ उभरतीं रहीं
हम अपनी असफलताओं को, अश्रुओं  में भिगोते चले गए
दबी दबी मुस्कराहटों के रहस्य गहराते गए हर पल
इधर तमाम उम्र हम यूँ ही ख्वाब संजोते चले गए //
---शांतनु सान्याल

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

ग़ज़ल


ग़ज़ल
ज़रा सी बात थी इशारों से कहा होता
हजूम सा था हद-ए-नज़र तमाशाई
हम डूब के गुज़रते जानिब-ए-साहिल
राज़-ए-उल्फत किनारों से कहा होता
तमाम रात चांदनी सुलगती रही
इज़हार-ए-वफ़ा आब्सारों से कहा होता
गुमसुम सा आसमाँ तनहा तनहा
तड़प दिल की चाँद तारों से कहा होता
हवाओं में तैरती तहरीर-ए-इश्क
आँखों की बातें बहारों से कहा होता
हम जान लुटाये बैठे हैं
इम्तहान-ए-अज़ल अंगारों से कहा होता /
--शांतनु सान्याल

नज़्म




किसी की याद में ज़िन्दगी यूँ बर्बाद न कीजे


क़ुदरत के बदलते अक्श, फूल ओ वादियाँ


दिल के सोये जज़्बात जगा जाएँ


किसी से मुहोबत की थी तुमने वसीयत तो न


लिख डाली, हवावों ने रुख़ ग़र मोड़ ली हो, तो


तुम अपनी राह बदल डालो


वफ़ा- बेवफाई के क़िस्से हो गये पुराने


ज़िंदगी के फ़लसफ़े बदल डालो


---शांतनु सान्याल