मेरुदंड विहीन समाज
पूर्वाग्रहों से ग्रसित,
एक पथिक व
असंख्य
बहुमुखी सर्प, पूजा - -
स्थल के सीढ़ियों
में दो हाथ जोड़े,
जीवन की
भीख
मांगता रहा पथिक - -
दिग्भ्रमित दर्शन,
उन्मादित
अनुयायी
रक्त व
गरल अविराम प्रवाहित।
अदृश्य शक्ति के लिए
मानव रक्त बहता
रहा। क़ाश
अशरीरी
शक्ति इन्हें रोक पाती
शुद्ध व पवित्र सही
अर्थों में बना
पाती।
-- शांतनु सान्याल
किसको मै अच्छा कहूँ ? हर पंक्ति दिल में उतर गयी ,बहुत उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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