शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

ग़ज़ल


ग़ज़ल
ज़रा सी बात थी इशारों से कहा होता
हजूम सा था हद-ए-नज़र तमाशाई
हम डूब के गुज़रते जानिब-ए-साहिल
राज़-ए-उल्फत किनारों से कहा होता
तमाम रात चांदनी सुलगती रही
इज़हार-ए-वफ़ा आब्सारों से कहा होता
गुमसुम सा आसमाँ तनहा तनहा
तड़प दिल की चाँद तारों से कहा होता
हवाओं में तैरती तहरीर-ए-इश्क
आँखों की बातें बहारों से कहा होता
हम जान लुटाये बैठे हैं
इम्तहान-ए-अज़ल अंगारों से कहा होता /
--शांतनु सान्याल

नज़्म




किसी की याद में ज़िन्दगी यूँ बर्बाद न कीजे


क़ुदरत के बदलते अक्श, फूल ओ वादियाँ


दिल के सोये जज़्बात जगा जाएँ


किसी से मुहोबत की थी तुमने वसीयत तो न


लिख डाली, हवावों ने रुख़ ग़र मोड़ ली हो, तो


तुम अपनी राह बदल डालो


वफ़ा- बेवफाई के क़िस्से हो गये पुराने


ज़िंदगी के फ़लसफ़े बदल डालो


---शांतनु सान्याल