वास्तविकता से कहीं दूर थीं,
ज़िन्दगी हमने भी जी है
हर पल ख़ुद को छला,
न कोई फूल ही
मुस्कराता
पाया,
न चांदनी को गुनगुनाते,
घाटियाँ उदास थीं
झरनों में थे
अदृश्य
इन्द्रधनुष, मायावी, स्वप्नमयी
पृथ्वी तुम्हारी कृति, हम ने
तो हर तरफ नग्न
सत्य देखा ।
-- शांतनु सान्याल