बुधवार, 7 जून 2023

जीवन - -

जीवन की परिभाषाएं जो तुमने गढ़ी
वास्तविकता से कहीं दूर थीं,
ज़िन्दगी हमने भी जी है
हर पल ख़ुद को छला,
न कोई फूल ही
मुस्कराता
पाया,
न चांदनी को  गुनगुनाते,
घाटियाँ उदास थीं
झरनों में थे
अदृश्य
इन्द्रधनुष, मायावी,  स्वप्नमयी
पृथ्वी तुम्हारी कृति, हम ने
तो हर तरफ नग्न
सत्य देखा ।

-- शांतनु सान्याल

13 टिप्‍पणियां:

  1. very true, nice post....
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - सम्पूर्ण प्रेम...(Complete Love)

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  2. आदरणीय शांतनु सान्याल जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आपके ख़ूबसूरत ब्लॉग पर आ'कर , ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविताएं पढ़ कर आज का दिन सफल हो गया :)
    हमने तो हर तरफ नग्न सत्य देखा
    बहुत अच्छी कविता है … आभार ! बधाई !

    आपकी अन्य कविताएं भी पढ़ीं … सारी पसंद आईं …


    ♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. उत्तर
    1. शांतनु सान्याल जी
      नमस्कार !

      मेरे दोनों ब्लॉग्स पर आपकी प्रतीक्षा है…

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  4. पृथ्वी तुम्हारी कृति ... बहुत सुंदर रचना !!!

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  5. झरनों में थे
    अदृश्य
    इन्द्रधनुष, मायावी, स्वप्नमयी
    पृथ्वी तुम्हारी कृति, हम ने
    तो हर तरफ नग्न
    सत्य देखा,,,,,।,, बहुत सुंदर रचना,

    जवाब देंहटाएं
  6. व‍िजयादशमी की हार्द‍िक शुभकामनायें शांतनु जी, जीवन का बड़ा कटुसत्य ल‍िख द‍िया आपने तो क‍ि ----

    हर पल ख़ुद को छला,
    न कोई फूल ही
    मुस्कराता
    पाया,
    न चांदनी को गुनगुनाते...बहुत खूब

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