शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

ग़ज़ल


ग़ज़ल
ज़रा सी बात थी इशारों से कहा होता
हजूम सा था हद-ए-नज़र तमाशाई
हम डूब के गुज़रते जानिब-ए-साहिल
राज़-ए-उल्फत किनारों से कहा होता
तमाम रात चांदनी सुलगती रही
इज़हार-ए-वफ़ा आब्सारों से कहा होता
गुमसुम सा आसमाँ तनहा तनहा
तड़प दिल की चाँद तारों से कहा होता
हवाओं में तैरती तहरीर-ए-इश्क
आँखों की बातें बहारों से कहा होता
हम जान लुटाये बैठे हैं
इम्तहान-ए-अज़ल अंगारों से कहा होता /
--शांतनु सान्याल

3 टिप्‍पणियां:

  1. सान्याल जी आपसे ये जानना था कि मैंने ब्लॉग अकॉउंट अगस्त 2020 में बनाया लेकिन ब्लॉगर दिखा रहा है कि मैं अप्रैल 2016 से ब्लॉगर पे हूँ।कृपया आप बताये कि इसे कैसे सही किया जा सकता है?

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