शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

-या तुम या हम जाने

गुलमोहरी शाम, किताब 
लौटाने के बहाने,
निगाहों की 
बातें, या 
तुम या हम जाने,
काँपते ओठों 
के राज़,
दिल 
के वो अफ़साने, आग बरसाती 
रातें, या तुम या हम जाने,
बाँहों में सिमटने की 
ख़ुशी, बेक़रारी 
के तराने,
बिन बादल बरसातें, या तुम 
या हम जाने, बेखौफ़ 
लुटने की लज्ज़त,
इश्क़ के ख़ज़ाने,
कभी सहमे 
कभी 
घबराते,या तुम या हम जाने। 
२ - रह रह के दर्द उठता, आह 
गिरती संभलती, तब जा
के मुहोब्बत का 
इज़हार 
किया होता, सोच में गुमसुम 
होते, दीवानगी का नशा 
बढ़ता, जुनूं में बिखर 
कर साहब, प्यार 
किया होता। 

- शांतनु सान्याल 

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