वास्तविकता से कहीं दूर थीं,
ज़िन्दगी हमने भी जी है
हर पल ख़ुद को छला,
न कोई फूल ही
मुस्कराता
पाया,
न चांदनी को गुनगुनाते,
घाटियाँ उदास थीं
झरनों में थे
अदृश्य
इन्द्रधनुष, मायावी, स्वप्नमयी
पृथ्वी तुम्हारी कृति, हम ने
तो हर तरफ नग्न
सत्य देखा ।
-- शांतनु सान्याल
love and regards dear friend
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंआदरणीय शांतनु सान्याल जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
आपके ख़ूबसूरत ब्लॉग पर आ'कर , ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविताएं पढ़ कर आज का दिन सफल हो गया :)
हमने तो हर तरफ नग्न सत्य देखा
बहुत अच्छी कविता है … आभार ! बधाई !
आपकी अन्य कविताएं भी पढ़ीं … सारी पसंद आईं …
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंthanks rajendraji, i have honored by your interest - naman sah
जवाब देंहटाएंशांतनु सान्याल जी
हटाएंनमस्कार !
मेरे दोनों ब्लॉग्स पर आपकी प्रतीक्षा है…
पृथ्वी तुम्हारी कृति ... बहुत सुंदर रचना !!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंझरनों में थे
जवाब देंहटाएंअदृश्य
इन्द्रधनुष, मायावी, स्वप्नमयी
पृथ्वी तुम्हारी कृति, हम ने
तो हर तरफ नग्न
सत्य देखा,,,,,।,, बहुत सुंदर रचना,
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें शांतनु जी, जीवन का बड़ा कटुसत्य लिख दिया आपने तो कि ----
जवाब देंहटाएंहर पल ख़ुद को छला,
न कोई फूल ही
मुस्कराता
पाया,
न चांदनी को गुनगुनाते...बहुत खूब
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
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